परिष्कृति सामाजिक सांस्कृतिक संस्था उज्जैन
की प्रस्तुति
सरमा पणि संवाद
ऋग्वेद 10-108
स्मृति शेष – श्री बंशी कौल, सुनयना सतीवारा, भूषण भट्ट , गीत सलूजा रावल को समर्पित
दिनांक :12/03/2022
स्थान :कालीबाड़ी मंदिर, विवेकानंद कॉलोनी, उज्जैन
निर्देशकीय –
पाश्चात्य विचारधारा के प्रेमी समीक्षक आलोचक यूनान को नाटकों की काशी मानते हैं । मुझे लगा कि संभवतः हमारे प्रयास इतने सक्षम नहीं रहे होंगे कि उन्हे सच बता सकें । कुछ तो व्यवस्था ही ऐसी थी कि पश्चिम की हर बात सच मानी जाति थी , और कुछ हमारी उदासीनता थी । मैं बहुत दिनों से वैदिक संवाद सूक्तों की नाट्य प्रस्तुतियों के बारे में सोच रहा था । परंतु वैदिक विद्वानों की आलोचना का भय रहा । इस बार भी भय तो है ही । परंतु भारतीय नाट्य परंपरा के उत्स को प्रकट करने का उत्साह अधिक जागृत हो गया । प्रभु के वचनों का आशय मोक्ष की प्राप्ति रहा है । जीवन की अनेक विकट स्थितियों से बाहर निकल कर आध्यात्मिक दर्शन को अनुभूत कराने वाले वैदिक मंत्र आज भी जागत ही हैं । ऐसे में उस परा ज्ञान को लौकिक रंजकता में रूपायित करना दुस्साहस ही कहा जायेगा । ऋत्विज के मंत्रों से दी जाने यज्ञ की आहूतियाँ मंच पर पात्र बन जायें ये अनेक लोगों को स्वीकार्य नहीं होगा । मेरा विनम्र अनुरोध है कि जिन वेदों से महामुनि भरत ने नाट्य शास्त्र को जन्म दिया उन्ही वेदों को साक्षात् होते देखना अप्रिय तो नहीं ही होगा ।
इस प्रस्तुति में मंत्रदृष्टा ऋषियों की तरह ऋचाओं को दृश्य में परिवर्तित करने का सामर्थ्य नहीं है । परंतु यह एक प्रयास है जो यह बात सामने रखना चाहता है कि इन संवाद सूक्तों में असीम नाट्य संभावनाएं हैं । हम इस समुद्र के किनारे को ही स्पर्श कर पायें हैं ।
सरमा पणि संवाद – मेरे लिए आधुनिक नाटकों की पृष्ठभूमि लगता है । आलोकन, मंच सज्जा , पाशविक अभिनय गतियाँ , वेशभूषा , रूपसज्जा आदि सभी सीखने के लिये यह श्रेष्ठ उदाहरण है ।
कथासार
वैदिक काल में जब ऋषिगणों और अधिकतर सामान्य वर्ग के लिए स्वर्ण धन नहीं था ।उनके लिए गायें ही संपदा थी ।जिस राजा के पास अधिक गायें होती थी वह अधिक संपन्न माना जाता था ।
एक बार बृहस्पति ऋषि की गायें पणि चुरा ले जाते हैं । उनके आह्वान पर इंद्र सरमा को अपनी दूती बनाकर भेजते हैं ।
स्वर्ग से सरमा मोह के रसों की नदी पार कर पणियों के निवास पाताल लोक की गहरी गुफाओं मे जाती है ।
पणियों को आश्चर्य भी होता है कि सरमा मोह के रसों की नदी पार कर अंधेरी गुफा तक कैसे पहुंच गई ।
सरमा अपना परिचय दे कर गायों की वापसी चाहती है ।
पणि उसे अनेक लालच और भय दिखा कर गायें देने से इन्कार करते हैं ।
इंद्र उनसे युद्ध कर गायें ऋषियों को वापस दिलाते हैं ।
मंच पर
इंद्र – देवेंद्र पालोत्रा
सरमा – केतकी ओझा , तनूजा मीणा , रौशनी राय, खुशी पाटीदार , स्वस्ति जैन
ऋषिगण – अमिताभ विश्वास सुधांशु , शैलेश नाटानी, महेंद्र ओझा , आकाश
रसों की नदी – केतकी ओझा , शुभम सत्यप्रेमी , राजू खान , महेश गोस्वामी , अंशुल पटेल , आदर्श यादव ।
पणि – शुभम सत्यप्रेमी , राजकुमार दोहरे , राजू खान , महेश गोस्वामी , अशुल पटेल , आदर्श यादव ।
मंच परे
संगीत संयोजन – गेहा दवे
वादन मार्गदर्शन – नरेंद्र सिहँ कुशवाह
वाद्य वृंद – शुभम सत्यप्रेमी , राजकुमार दोहरे , देवेंद्र पालोत्रा , राजू खान , महेश गोस्वामी , अशुल पटेल , आदर्श यादव ।
मंच सज्जा , सामग्री, वेशभूषा – सुदर्शन स्वामी, शुभम सत्यप्रेमी , राजकुमार दोहरे , राजू खान, देवेंद्र पालोत्रा, महेश गोस्वामी, अंशुल पटेल , आदर्श यादव , तनूजा मीणा , रोशनी राय , स्वस्ति जैन ।
रूपसज्जा – रानू सत्यप्रेमी
आलोकन – गोकुल परमार
वैदिक मार्गदर्शन – डा गोपालकृष्ण शुक्ला , डा महेंद्र पंड्या ।
सह-निर्देशन -शुभम सत्यप्रेमी
निर्देशन -श्री सतीश दवे



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