कथासार
सूत्रधार कालिदास के नाटक को मंचित करने का कहता है । वह नये कवि की रचना की सार्थकता बताता हैं , बकुलावलिका और कौमुदिका आपस में बात करती हैं किदासी मालविका कैसे राजा की दृष्टि में आगई है जबकि महारानी धारिणी मालविका को राजा की नजरों से छिपाना चाहती हैं,और केसेएक दिन चित्रषाला मे इरावती के साथ चित्र देखते हुए वसुलक्ष्मी मालविका दिखा देती है। महाराज अग्निमित्र चित्र में मालविका का सौंदर्य देखकर मोहित हो जाते हैं , विदूषक मालविका को राजा से मिलवाने के लिये नृत्याचार्यो का झगड़ा रचवाता है मालविका का नृत्य देखकर राजा और उत्कंठित होजाता है। विदूषक के प्रयासों से मालविका का रिाजा से प्रमद वन में मिलना तय होता है ।जहॉं मालविका अषोक वृक्ष के दोहद के लिये आयी है वह बताती है कि गौतम की नादानी के कारण झूले पर झूलती धारणी के पांव में चोट लग गई थी और उन्होंने मालविका को यह कहते हुए निर्देष दिया था कि यदि मालविका के दोहद से अषोक वृक्ष पुष्पित हो जाता है तो वे मालविका की अभिलाषा पूर्ण कर देगीं । वकुलावलिका उसे राजा के प्रेम के बारे में बताती है । मालविका अषोक वृक्ष का दोहद करती है राजा और विदूषक वहॉं पहुॅच जाते है । लेकिन राजा की दूसरी रानी इरावती जो राजा के आमत्रंण पर झूला झूलने के विचार से प्रमद वन में आयी थी अपनी सखी निपुणिका के बताने पर मालविका और राजा को देख लेती है । तब मालविका को धारणि के आदेष पर बंदी बनाकर समुद्र गृह में कैद कर दिया जाता है । विदूषक फिर खुद को सांप काट लेने का झूठा षडयंत्र करके महारानी धारिणी से नागमुद्रित अगुंठीलेकर मालविका को छुड़वा लेता हैं । वकुलावलिका और विदूषक के सहयोग से समुद्रगृह में फिर राजा का मालविका से मिलन होता है । लेकिन यहॉं भी दासी चंद्रिका के बताने पर रानी इरावती निपुणिका के साथ समुद्र गृह पर पहुॅंच जाती है । राजा और मालविका को देखकर बहुत क्रोधित होती है । लेकिन तभी यह सेना वहॉं पहुॅंचती है और रानी इरावती की बहन वसुलक्ष्मी के वानर से डर जाने की घटना बताती है। सभी वसुलक्ष्मी को ढाढस बधाने के लिए चले जाते है । देव योग से अषोक वृक्ष पुष्पित हो जाता है रानी धारणि ने यह वचन दिया था कियदि मालविका के दोहद से अषोक वृक्ष पुपित हो जाता है तो वे मालविका की अभिलाषा पूर्ण कर दंेगी । इस कारण धारणि मालविका का विवाह राजा अग्निमित्र से करने का निर्णय लेते है । महाराज के दरबार में विदर्भ की दो महिलायें आती हैं वे वहां उपस्थित माधवसेन की बहिन मालविका तथा माधवसेन के सचिव सुमतिकी बहन परिव्राजिका को पहचान लेती हैं । परिव्राजिका सारी घटना बताती है कि राजकुमारी मालविका विदर्भ के माधवसेन की बहिन थी जो यज्ञसेन से युध्द में हार गया था। मालविका भागकर विदिशा के राजा अग्निमित्र की महारानी धारीणी की दासी की तरह रहने लगी थी। और तभी राजा के पिता पुश्यतित्र की सूचना मिलती है कि राजा के पुत्र ने अष्वमेघ यज्ञ के घोड़े के कारण हुए युद्ध में विजय पायी है। सब प्रसन्न होते हैं राजा सभी बंदीयों को मूक्त कर दता है ।महारानी धारिणी महाराज अग्निमित्र काविवाह मालविका से करवा देती हैं । अंत में भरत वाक्य सभी के लिए मंगल कामना करता है।
मंच पर
1 हर्षित शर्मा – कालिदास
2 शुभम सत्यप्रेमी – वररूचि/विदुषक
3 चितेन्द्र सिसोदिया – विक्रमादित्य/अग्निमित्र
4 राजु खान – नट/ग्वालक/धनवंतरी
5 देवेन्द्र पालोत्रा-ग्वालक/वरामीहिर/कर्ण्व
6 महेश गोस्वामी -वररूचि शिष्य/वेतालभट काका/योगेन्द्ररायण/गणदास
7अन्शुल पटेल-ग्वालक/ आचार्य चन्द्रगुपूत /पतन्जली/मुलदेव/महाराज उदयन/अग्निमित्र
8राजवीर सिंह -वररूचि शिष्य/घटकरपर/हरदत
9आकाश मकवाना-वररूचि शिष्य/
10तेजस्वनी चावण्ड – विद्योतमा
11 हिमान्शी तिवारी -नटी/सखी/धारिणी/देवदत्ता
12तनुजा मीणा-सखी/पदमावती/प्रियंगुसेना
13मधुलालवानी-सखी/परिव्राजिका/हंसपदिका
14पल्लवी सिसोदिया-सखी/वासवदत्ता/प्रियंवदा
15 शालु स्वामी /सखी
मंच परे
संगीत संयोजन /गायन – सभी
राजकुमार दोहरे -ताल वाद्य
वासु धवन-ढोलक
रंग सामग्री-राजुखान/अंशुल पटेल/सुर्दशन स्वामी
वेशभूषा – देवेन्द्र पालोत्रा/राजवीर सिंह /हिमांशी तिवारी/मधु लालवानी/तनुजा मीणा/पल्लवी सिसोदिया
रंगसज्जा-शुभम सत्यप्रेमी/महेश गोस्वामी
आलोकन -रोनक वर्मा
मंचप्रंबधन-शुभम सत्यप्रेमी
लेखाक-श्री भगवतीराज प्रसाद राजप्रोहित
सह-निर्देशन-हर्षित शर्मा
निर्देशन -श्री सतीश दवे
प्रस्तुति-बालमंच/परिष्कृति सामाजिक सांस्कृतिक संस्था उज्जैन





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