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Parishkrati & Baalmanch Ujjain

The Organisation of cultural activities in Ujjain

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डॉ. बालकृष्ण शर्मा

डॉ. बालकृष्ण शर्मा
सेवानिवृत्त संस्कृत आचार्य
एवं
पूर्व कुलपति
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन
40 साल तक विक्रम विश्वविद्यालयीन कालिदास समारोह का संयोजन किया ।

आचार्य बालकृष्ण शर्मा


विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति, सिंधिया प्राच्य विद्या शोध प्रतिष्ठान के पूर्व निदेशक, आचार्य बालकृष्ण शर्मा की बचपन से सेवानिवृत्ति तक की सारस्वत साधना यात्रा के अनेक सोपान रहे हैं।


आपका जन्म उज्जैन नगर में श्रीमती केसरबाई एवं श्री शंकरलाल शर्मा के संस्कारवान् परिवार में दिनांक 24.02.1956 को हुआ। आपकी शिक्षा शासकीय माध्यमिक विद्यालय, बुधवारिया, शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय महाराजवाड़ा, माधव महाविद्यालय एवं संस्कृत अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय में संपन्न हुई। प्रो. श्रीनिवास रथ के निर्देशन में “काव्यप्रकाश का दार्शनिक धरातल“ विषय पर वर्ष विक्रम विश्वविद्यालय से पीएच्.डी. की उपाधि प्राप्त की।यह शोध प्रबंध विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली की उच्च स्तरीय शोध ग्रंथ प्रकाशन योजना के अंतर्गत प्रकाशित हुआ। अपने अध्ययनकाल में संस्कृतविद् विद्वान् आचार्य वि. वेंकटाचलम्, प्रो.श्रीनिवास रथ प्रो. हरीन्द्र भूषण जैन, कालिदास अकादमी के आचार्य कुल के आचार्य पं. बच्चूलाल अवस्थी एवं बदरीनाथ धाम के तत्कालीन प्रधान रावल श्री विष्णु केशवन् नम्बूदिरि (दीक्षागुरु) का सान्निध्य एवं सुयोग्य मार्गदर्शन मिला ।

कालजयी नगरी उज्जयिनी में जन्म से आज तक अनेक उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। आपने एक शिक्षार्थी, शोधअध्येता, प्राध्यापक, निदेशक, आचार्य एवं कुलपति के कर्तव्यों एवं दायित्वों का निष्ठापूर्वक निर्वहन करते हुए शैक्षणिक, अकादमिक, प्रशासनिक एवं शोधकार्य के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए हैं।

प्रो. शर्मा ने अनेक विश्वविद्यालयों, संस्थाओं और शैक्षणिक उत्कृष्ट केंद्रों द्वारा आयोजित सेमिनारों, सम्मेलनों और कार्यशालाओं में सहभागिता की एवं व्याख्यान दिए हैं । आपने राष्ट्रीय पांडुलिपि कालिदास मिशन, संस्कृति मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा ’पांडुलिपियों का सर्वेक्षण’ एवं ’पांडुलिपियों का संरक्षण’ नामक प्रमुख योजनाओं का निर्देशन किया है। वहीं लगभग चार दशकों तक विक्रम विश्वविद्यालय की कालिदास समिति के विभिन्न पदों के साथ ही, दीर्घ काल तक सचिव के रूप में महती भूमिका निभाई है। आपने दस पुस्तकों का सम्पादन किया एवं आपके अनेक शोध पत्र प्रकाशित हैं। आपके शोध निर्देशन में सोलह शोधार्थियों ने पीएच् .डी. एवं पच्चीस ने एम.फिल्. की उपाधियाँ प्राप्त की हैं। आपने संस्कृत भाषा और साहित्य के विभिन्न आयामों पर विभिन्न संगोष्ठियों, सम्मेलनों ,व्याख्यानों और कार्यशालाओं का आयोजन एवं सहभागिता की है।

आपके शोध कार्यो एवं शैक्षणिक उपलब्धियों को दृष्टिगत रखते हुए अनेक संस्थानों, संस्थाओं एवं प्रतिष्ठानों द्वारा अनेक सम्मानों से समय-समय पर सम्मानित एवं अभिनंदित किया गया है। इन में मध्यप्रदेश संस्कृत अकादमी का राष्ट्रस्तरीय साहित्य शास्त्रार्थ पुरस्कार, भोज पुरस्कार, व्यास पुरस्कार, विद्वत् परिषद् वाराणसी का प्राच्यविद्या विभूषण सम्मान और मध्य प्रदेश के महामहिम राज्यपाल द्वारा प्रदत्त शास्त्रकलानिधि सम्मान उल्लेखनीय हैं।

सिन्धिया प्राच्यविद्या शोध प्रतिष्ठान में मध्यप्रदेश में पांडुलिपियों का सर्वेक्षण, पांडुलिपियों का विज्ञान एवं प्राचीन लिपियों पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन एवं दो हजार से ज्यादा पांडुलिपियाँ प्राप्त कर संगृहीत की हैं।
28 फरवरी 2021 को विक्रम विश्वविद्यालय की सुदीर्घ सेवा के पश्चात् सेवानिवृत्त।

Inspiration

“Every day is another chance to get stronger, to eat better, to live healthier, and to be the best version of you.”

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